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Sunday 15 January 2012


तेरे ग़म के पनाह में अर्से बिते

तेरे ग़म के पनाह में अर्से बिते,
आरजू के गुनाह में अर्से बिते,,


i may be alone but never lonely
अब तो तन्हाई है पैरहम दिल की,


सपनों को दारगाह में अर्से बिते,,

कुछ तो बिते हुए वक्त का तकाज़ा है,
कुछ तो राहों ने शौकया नवाजा है,,

जब से सपनों में तेरा आना छुटा,
नींद से मुलाक़ात के अर्से बिते,,

बिते हुए लम्हों से शिकवा नहीं,
मिल जाए थोड़ा चैन ये रवायत नही,,

मेरे टुकडो में अपनी खुशी ढूँढो ज़रा
"फरीद" बिखरे इन्हे फुटपाथ पे अर्से बिते …

बेज़ार मैं रोती रही, वो बे-इन्तेहाँ हँसता रहा

बेज़ार मैं रोती रही, वो बे-इन्तेहाँ हँसता रहा,
वक़्त का हर एक कदम, राहे ज़ुल्म पर बढ़ता रहा,,

ये सोच के कि आँच से प्यार की पिघलेगा कभी,
मैं मोमदिल कहती रही, वो पत्थर बना ठगता रहा,,

उसको खबर नहीं थी कि मैं बेखबर नहीं,
मैं अमृत समझ पीती रही, वो जब भी ज़हर देता रहा,,

मैं बारहा कहती रही, ए सब्र मेरे सब्र कर,
वो बारहा इस सब्र कि, हद नयी गढ़ता रहा,,

था कहाँ आसाँ यूँ रखना, कायम वजूद परदेस में,
पानी मुझे गंगा का लेकिन, हिम्मत बहुत देता रहा,,

बन्ध कितने ढंग के, लगवा दिए उसने मगर,
"फरीद" तेरा प्रेम मुझको, हौसला देता रहा ...

वक़्त नहीं है कहते कहते वक़्त निकल गया

वक़्त नहीं है कहते कहते वक़्त निकल गया,
जुबान से हर वक़्त यही जुबला फिसल गया,,

दिल से सोचने का कभी वक़्त नहीं मिला,
दिमाग से सोचने में सारा वक़्त निकल गया,,

खून के रिश्तों की बोली पैसों में लग गई,
निज़ाम जमाने का किस क़दर बदल गया,,

बुलाने वाले ने बुलाया हम ही रुके नहीं,
अब तो वह भी बहुत आगे निकल गया,,

हमें तो खा गई शर्त साथ साथ रहने की,
वह शहर में रहा और घर ही बदल गया,,

दिल मोम का बना है नहीं बना पत्थर का,
जरा सी आंच पाते एक दम पिघल गया,,

इतना प्यार हो गया है इस जिस्म से हमे,
चोट खाकर दिलफिर झट से संभल गया,,

तुम मिले मुझको "फरीद" कुछ ऐसी अदा से,
ग़ज़ल को मेरी खुबसूरत मिसरा मिल गया ...

धूप भी प्यार का ही एहसास है

धूप भी प्यार का ही एहसास है,
लगता है जैसे कोई आस पास है,,

पहाड़ों का दिल चीर देती है रात,
दिन का होना सुख का एहसास है,,

गुलाबी ठंड के साथ ताप जरूरी है,
दर्द ही रौशनी का भी विश्वास है,,

अर्श से फर्श पर आना आसान है,
फर्श से अर्श तक जाना ही खास है,,

चाँद के चेहरे पर दर्द पसरा है,
रेत का बिस्तर चांदनी का वास है,,

यह कहानी भी हमे सदा याद है,
आँखों को आंसुओं की प्यास है,,

सीमाएं अपनी जानता हूँ मैं,
जबतक सांस है दिल में आस है,,

वो मुझे पूछते हैं मेरा ही वजूद,
प्यार करना ही मेरा इतिहास है,,

काम मेरा "फरीद" रुका कभी भी नहीं,
उस पर मुझे इतना विश्वास है ...

प्यादे बहुत मिले मगर वज़ीर न मिला



प्यादे बहुत मिले मगर वज़ीर न मिला,
सबकुछ लुटा दे ऐसा दानवीर न मिला,,

जिसे दरम चाहिए न चाहिए दीनार,
ऐसा कोई मौला या फकीर न मिला,,

अपनी फकीरी में ही मस्त रहता हो,
फिर ऐसा कोई संत कबीर न मिला,,

प्यार के किस्से सारे पुराने हो चले,
अब रांझा ढूंढता अपनी हीर न मिला,,

जख्म ठीक कर दे जो बिना दवा के,
हमें ऐसा मसीहा या पीर न मिला,,

खुद ही उड़ कर लग जाए माथे से,
ऐसा भी गुलाल और अबीर न मिला,,

किस्मत को कोसते हुए सारे मिले,
लिखता कोई अपनी तकदीर न मिला ...

 कहूगा रात को सुबहा गजल सूना दूगां

कहूगा रात को सुबहा गजल सूना दूगां,
मै दिल का हाल उसे इस तरहा बता दूगां,,

सुकून दिन को मिलेगा ना रात मै उस को,

मै दिल चुराने की ऐसी उसे सजा दूगां,,

मिसाल देगा जमाना मेरी मोहब्बत की,
मै अपने प्यार को वो मर्तबा दिला दूगां,,

नजर बचा के जमाने से तुम चली आना,
मै कर के याद तुम्हे हिचकिया दिला दूगां,,

वो मेरे सामने आयेगी जब दुल्हन बनकर,
नजर का टीका उसे चूम कर लगा दूगां,,

वो मुझ को देख के "फरीद" मुस्कुरा देगे,
मै उस को देख के एक कहकहा लगा दूगां ...

ऐसे कपडो का अब तो चलन हो गया

ऐसे कपडो का अब तो चलन हो गया,
जैसे शीश् मै रक्खा बदन हो गया ,,


अब ना सीता मिलेगी ना राधा यहा,
थोडा थोडा सा पेरिस वतन हो गया,,

कैसे बच्चे शराफत से पालूगा मै,
गुण्डा गर्दी का अब तो चलन हो गया,,

रो के सो जाये मॉ बाप भूखे मेरे,
मै तो बच्चो मो अपने मगन हो गया,,

घर मेो बेटी सियानी मेरे हो गई,
सोच कर बू मेरा बदन हो गया,,

बेच कर मैने इमा तरक्की तो की,
मेरी नजरो में मेरा पतन हो गया,,

लोग आबाद होगे कहा से भला "फरीद",
जान सस्ती हे महंगा कफन हो गया ...

मैने खुद सा दुनिया मे बेवफा नही देखा

मैने खुद सा दुनिया मे बेवफा नही देखा,
फिर भी उस के होठो पर कुछ गिला नही देखा,,

चॉद चख्रर्र से आकर कह गया है कानो मै,
लाख चेहरे देखे हे आप सा नही देखा,,

आओ मेरी ऑखो मे देख कर सॅवर जाओ,
आज लग रहा तुमने आईना नही देखा,,

एक चॉद बदली मै एक रु ब रु मेरे,
ऐसी रात का मन्जर दिलरुबा नही देखा,,

सिर्फ उस की ऑखो से मयकशी का आदी हॅू,
मैने आज तक लोगो मयकदा नही देखा,,

उस की मेरी उल्फत भी एतकाफ जैसी है,
आज तक किसी ने भी नक्श ऐ पा नही देखा,,

जिसने प्यार मे "फरीद"  जिन्दगी गुजारी हो,
मेने आज तक ऐसा दिलजला नही देखा ...

शाम होते ही शरारतों की याद आती 

शाम होते ही शरारतों की याद आती है,
चमकती तेरी आँखों की याद आती है,,

वक़्त वह जब एक दूसरे को देखा था,
महकते फूल से लम्हों की याद आती है,,

सर-ता-पा तुझे आज तक भूला नहीं हूँ,
मिट्टी से सने तेरे पावों की याद आती है,,

मुहब्बत की फिजाओं में उस सफ़र की,
खाई कौलों कसमों की याद आती है,,

उन दिनों मैं मर मर कर जिया था,
उस उम्र के कई जन्मों की याद आती है,,

चिलचिलाती जेठ की तपती दुपहरी में,
साया देते तेरे गेसूओं की याद आती है,,

कहीं रहो तुम रहो खैरियत के साथ "फरीद" ,
दिल को इन्ही दुआओं की याद आती ...

बेरुखी ऐसी की छिपाए न बने

बेरुखी ऐसी की छिपाए न बने,
बेबसी ऐसी की बताए न बने,,

वो रु-ब-रु भी इस तरह से हुए,
उनको देखे न बने लजाए न बने,,

उनके हाथों की हरारत नर्म सी,
हाथ छोड़े न बने सहलाए न बने,,

चेहरा निखरता गया हर एक पल,
महक छिप न सके उडाए न बने,,

वक्त अच्छा था गुज़र गया जल्दी,
याद आए न बने भुलाए न बने,,

बहुत जानलेवा बना है "फरीद" सन्नाटा,
घर रहते न बने कहीं जाते न बने ...

घाव ठीक हो गया दर्द अभी बाकी है

घाव ठीक हो गया दर्द अभी बाकी है,
पेड़ पर पत्ता कोई ज़र्द अभी बाकी है,,

सजल नर्म चांदनी तो खो गयी रात में,
धूप निकल गयी हवा सर्द अभी बाकी है,,

आइना तू मुस्कराना न भूलना कभी,
चेहरे पर जमी हुई गर्द अभी बाकी है,,

इंसान मर चूका इंसान के अन्दर का,
अन्दर का शैतान मर्द अभी बाकी है,,

जाने किस हाल में हैं आगे चले गये वो,
यहाँ तो सफ़र की गर्द अभी बाकी है,,

मेरे हाथों की लिखी हुई तहरीर में "फरीद" ,
वहशते-दिल का दर्द अभी बाकी है ...

किताब आदमी को आदमी बनाती है

किताब आदमी को आदमी बनाती है,
बेकद्री इनकी दिल को जख्मी बनाती है,,

किताब कोई कभी भी भारी नहीं होती,
किताब आदमी को पढना सिखाती है,,

अदब आदमी जब सब भूल जाता है,
किताब ही तब तहजीब सिखाती है,,

उसके हर सफ़े पर लिखी हुई इबारत,
सारी जिंदगी का एहसास दिलाती है,,

किताबों के संग बुरा सलूक मत करना,
यह मिलने जुलने के ढंग सिखाती है,,

"फरीद" कभी रुलाती है कभी बहुत हंसाती है,
नहीं किसी को ये कभी भरमाती है ...

इतनी बेरूखी कभी अच्छी नहीं

इतनी बेरूखी कभी अच्छी नहीं,
ज्यादा दीवानगी भी अच्छी नहीं,,

फासला जरूरी चाहिए बीच में,
इतनी दिल्लगी भी अच्छी नहीं,,

मेहमान नवाजी अच्छी लगती है,
सदा बेत्क्लुफ्फी भी अच्छी नहीं,,

कहते हैं प्यार अँधा होता है मगर,
आँखों की बेलिहाज़ी भी अच्छी नहीं,,

हर बात का एक दस्तूर होता है,
प्यार में खुदगर्जी भी अच्छी नहीं,,

"फरीद" वायदे तो खुबसूरत होते हैं बहुत,
वायदा-खिलाफी भी अच्छी नहीं ...


मैंने तेरे नाम चाहतें लिख दी

मैंने तेरे नाम चाहतें लिख दी,
आँखों की तमाम हसरतें लिख दी,,

रंग जो हवा में बिखर गये थे,
ढूँढने की उन्हें सिफारिशें लिख दी,,

अपनी मुहब्बत तुझे सुपुर्द कर,
तेरे नाम सारी वहशतें लिख दी,,

खुशबु उड़ाती तेरी शामों के नाम,
बहार की सब नर्मआहटें लिख दी,,

चमकते जुगनुओं की कतार में,
ख़ुशी की मैंने वसीयतें लिख दी,,

किस जुबां से तुझे शुक्रिया दूं मैं,
अपने हाथों में तेरी लकीरें लिख दी,,

तुझे खबर नहीं दी "फरीद" अपने होने की,
फिर भी तेरे नाम साजिशें लिख दी ....

आज की रात यूं ही गुज़र जाने दे

आज की रात यूं ही गुज़र जाने दे,
पहलू में नई शय उभर जाने दे,,

तेरी रज़ा में ही मैं ढल जाऊँगा,
कतरा बनके मुझे बिखर जाने दे,,

बहुत शोर मचा है जिंदगी में तो,
तन्हाई में भी तूफ़ान भर जाने दे,,

यादों का आना जाना लगा रहेगा,
सीने में कुछ देर दर्द ठहर जाने दे,,

अँधेरे की फितरत से वाकिफ हूँ,
आँगन में बस सहर उतर जाने दे,,

आसमां जमीं पर ही उतर आएगा,
फलक को तह दर तह भर जाने दे,,

मुर्दे में भी जान आ ही जाएगी,
एहसास से जरा उसे भर जाने दे,,

आवाज़ देकर "फरीद" बुला लेना कभी भी,
इस वक़्त मुझे पार उतर जाने दे ...

न बादल होता न बरसात होती,

न बादल होता न बरसात होती,
दिन अगर न होता न रात होती,,

गम ही न होता अगर जिंदगी में,
बहार से भी न मुलाक़ात होती,,

नए लोगों की जो आमद न होती,
रंगों से कैसे फिर मुलाक़ात होती,,

लफ्ज़ ख़ूबसूरत लिखने न आते,
मुहब्बत में हमें फिर मात होती,,

अच्छा है रही न कोई भी तलब,
मिटती हुई उमीदें-हालात होती,,

खुशबु-ऐ-हिना उड़कर आई थी,
मिल जाती कुछ और बात होती,,

जुर्म जिसका था सजा उसे मिलती,
हुज्ज़त की न कोई बात होती,,

"फरीद" अंगड़ाइयों से बदन टूट जाता,
बरसात की अगर यह रात होती ...

एक बार लब से छुआ कर तो देखिये,
चीज़ लाजवाब है पी कर तो देखिये,,

बड़ी हसीं शय है कहते हैं इसे शराब,
दवा दर्दे दिल है आजमाकर तो देखिये,,

उदासी खराशें थकान मिट जाएँगी,
जाम से जाम टकरा कर तो देखिये,,

गम ही गम हैं यहाँ कौन कहता है,
ख़ुशी महक उठेंगी पीकर तो देखिये,,

इसका अलग निजाम है जान जाओगे,
इसके साथ जरा लहरा कर तो देखिये,,

तहेदिल से करोगे इसे " फरीद " तुम सलाम,
एक बार अपना बना कर तो देखिये ...

लकीर चेहरे पर उम्र का पता देती है,
लकीर हाथ की मुकद्दर का पता देती है,,

हवा नमकीन समंदर से उड़के आती है,
उदास हो तो टूटे जिगर का पता देती है,,

बेहद प्यार से संवारते हैं हम घर को,
उजड़ी हवेली खंडहर का पता देती है,,

दुखों का बंटवारा कर नहीं पाते हम,
ख़ुशी किसी धरोहर का पता देती है,,

कभी हंसी कोई जान निकाल देती है,
कोई दिल के अन्दर का पता देती है,,

गाँव बनावटीपन से बहुत दूर होता है" फरीद ",
रोटी दिल लुभाते शहर का पता देती है ...

जवानी अपनी जवानी पर थी,
निगाहें उसकी जवानी पर थी,,

अज़ब खुमारी का माहौल था,
दीवानगी पूरी दीवानी पर थी,,

किसी को अपनी परवा न थी,
शर्त भी रूहे-कुर्बानी की थी,,

हुस्न भी सचमुच का हुस्न था,
खुशबु भी तो जाफरानी पर थी,,

वक़्त का पता नहीं कटा कैसे,
चर्चा दिल की नादानी पर थी,,

तैरने वाले भी "फरीद’’ तैरते भला कैसे,
दरिया ए इश्क उफानी पर थी ...

जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है,
जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है,,

सुबह और होती है शाम कुछ और,
गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है,,

कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ,
कभी कोई भी सजा दिला देती है,,

चादर ओढ़ लेती है आशनाई की,
"फरीद’’ हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है,,

चलते चलते थक जाती है जिस शाम,
मुसाफिर को कहीं भी सुला देती है ...

रोज़ रोज़ जश्न या जलसे नहीं होते,
मोती क़दम क़दम पे बिखरे नहीं होते,,

सदा मेरी लौटकर आ जाती है सदा,
उनसे मिलने के सिलसिले नहीं होते,,

खुश हो लेता था दिल जिन्हें गाकर,
अब होठों पर प्यार के नगमे नहीं होते,,

कितने ही बरसा करें आँख से आंसू,
सावन में सावन के चरचे नहीं होते,,

घबरा रहा है क्यों वक़्त की मार से,
बार बार ऐसे सिलसिले नहीं होते,,

गुज़र गई सर पर कयामतें इतनी "फरीद’’,
किसी बात में उनके चरचे नहीं होते ...

हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं,
पिया क्यों शहर में मुझे भूले पड़े हैं,,

आजाओ जल्दी से अब रहा नहीं जाता,
कि अमिया की ड़ाल पर झूले पड़े हैं,,

सावन का महीना है मौका तीज का,
पहने आज हाथों में मैंने नए कड़े हैं,,

समां क्या होगा जब आकर कहोगे,
गोरी अब तो तेरे नखरे ही बड़े हैं,,

आजाओ जल्दी अब रहा नहीं जाता,
हाथों में रची मेहँदी सूने झूले पड़े हैं ...

दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे,
तुझसे हुई वह मुलाकात याद है मुझे,,

बरसते पानी में हुस्न का धुल जाना,
दहकी हुई वह बरसात याद है मुझे,,

तेरा संवरना उसपे ढलका आंचल,
संवरी बिखरी सी हयात याद है मुझे,,

सर्द कमरे में गर्म साँसों की महक,
हसीं लम्हों की सौगात याद है मुझे,,

दिल में उतरके रहने की तेरी वो ज़िद,
ह्या में डूबी रेशमी रात याद है मुझे,,

तेरी आँखों की मुस्कराती तहरीर,
दिल लुभाती हर बात याद है मुझे,,

पत्थर पत्थर है कहाँ पिघलता है,
मोम नर्म दिल है तब ही जलता है,,

बादल के पास अपना कुछ भी नहीं,
समंदर का गम लेकर बरसता है,,

जरा सी बात पर खफ़ा जो होता है,
हर बात पर वही तो बिगड़ता है,,

पुरानी यादों से आग निकलती है,
दरिया आग का बहता लगता है,,

जितने दिन भी जी लेता है आदमी,
कर्ज़ साँसों का ही अदा करता है,,

गुबार जो इक्कठा होता है दिल में "फरीद’’,
ग़ज़ल बनकर लब से निकलता है ...