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Saturday, 14 January 2012


मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं,
मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं,,

कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको,
वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं,,

हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई,
वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं,,

बात का खुलासा होता भी तो कैसे,
सब हैं कि नई गाँठ लगाने में लगे हैं,,

फ़िराक़ मुझे जबसे लगने लगा अज़ीज़,
वो मुझे मुहब्बत सिखाने में लगे हैं,,

यकीनन चेहरा उनका बड़ा खुबसूरत है,
उस पर भी नया चेहरा चढ़ाने में लगे हैं,,

मुझसे न पूछा क्या है तमन्ना कभी मेरी,
बस वो अपना रुतबा बढ़ाने में लगे हैं...

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