पुराने किसी ज़ख्म का खुरंड उतर गया
पुराने किसी ज़ख्म का खुरंड उतर गया,
दिल का सारा दर्द निगाहों में भर गया,,
धुंआ बाहर निकला तब मालूम ये हुआ,
जिगर तक जलाकर वो राख़ कर गया,,
एक अज़ब सा जादू था हसीन आँखों में,
तमाशा बनकर चारों सू बिखर गया,,
तस्वीर जो मुझ से बात करती थी सदा,
गरूर में उसके भी नया रंग भर गया,,
लगने लगा डर मुझे आईने से भी अब,
धुंधला मेरा अक्स इस क़दर कर गया,,
दरीचा खुला होता तो यह देख लेता मैं,
नसीब मेरा मुझे छोड़ कर किधर गया,,
चिराग उम्मीदों का दुबारा न जलेगा,
निशानियाँ ऐसी कुछ वो नाम कर गया...
No comments:
Post a Comment