तेरे ग़म के पनाह में अर्से बिते
तेरे ग़म के पनाह में अर्से बिते,
आरजू के गुनाह में अर्से बिते,,
अब तो तन्हाई है पैरहम दिल की,
सपनों को दारगाह में अर्से बिते,,
कुछ तो बिते हुए वक्त का तकाज़ा है,
कुछ तो राहों ने शौकया नवाजा है,,
जब से सपनों में तेरा आना छुटा,
नींद से मुलाक़ात के अर्से बिते,,
बिते हुए लम्हों से शिकवा नहीं,
मिल जाए थोड़ा चैन ये रवायत नही,,
मेरे टुकडो में अपनी खुशी ढूँढो ज़रा
"फरीद" बिखरे इन्हे फुटपाथ पे अर्से बिते …
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