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Sunday, 15 January 2012


कल के रहजन बन गये शहरयार, देखिए,
वैशाखियों पे चल रही ये सरकार, देखिए,,

तारीकियाँ, मायूसियाँ, तबाहियाँ और बलाएँ,
बह रही इस मुल्क में कैसी बयार देखिए,,

दुकान सजाये बैठे हैं सदाक़तो ईमान बेचने,
रिश्वतों पे चल रहा सारा कारोबार, देखिए,,

किस मुक़ाम पे जा पहुँची तर्जे सियासत यहाँ,
हुकूमतों में बैठे जम्हूरियत के ठेकेदार देखिए,,

हदे निगाह तक है बस वही सूरत-ए-हालात,
झूठी तसल्लियों पे बैठे है कितने बेदार, देखिए,,

सियासत के खु़दाओं तक पहुँचती नहीं अब सदा,
दब गयी फ़ाक़ों में आवाम की पुकार, देखिए,,

हर दिन बदल जाती है "फरीद’’ यहाँ शर्ते जिन्दगानी,
बन गया यहाँ आदमी कितना लाचार, देखिए ...

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